Thursday, 26 September 2013

।। बारह भावना (राजा राणा छत्रपति )।

** रचयिता : श्रीमान पंडित कविवर भूधरदास जी कृत ।
                                   :दोहा :
राजा  राणा   छत्रपति ,  हाथिन   के   असवार ।
मरना सबको एक दिन , अपनी - अपनी बार ।। १।।
दल बल देवी देवता , मात    पिता      परिवार ।
मरती बिरियां जीव को , कोई न राखन हार ।।२।।
दाम बिना निर्धन दुखी , तृष्णा   वश  धनवान ।
कंहू न सुख संसार में , सब जग देख्यो छान ।।३।।
आप  अकेला  अवतरे ,   मरे   अकेलो    होय ।
यूँ कबहूँ इस जीव को , साथी सगा न कोय ।।४।।
जहां देह अपनी नहीं , तहां   न अपना  कोय ।
घर सम्पति पर प्रगट ये , पर है परिजन लोय ।।५।।
दीपै चाम - चादर  मढ़ी , हाड      पींजरा देह ।
भीतर या सम जगत में ,अवर नहीं घिन गेह ।।६।।
                             :सोरठा :
मोह   नींद  के  जोर ,  जगवासी   घुमै    सदा ।
कर्म चोर चंहु ओर ,    सरवस लूटे सुध नहीं ।।७।।
सतगुरु देय जगाय ,मोह नींद    जब उपशमै ।
तब कछु बनै उपाय , कर्म चोर आवत रुकै ।।८।।
                              :दोहा :
ज्ञान दीप तप तेल भर ,  घर      शोधै भ्रम   छोर ।
या विध बिन निकसे नहीं , पैठे पूरब     चोर ।।९।।
पञ्च महाव्रत संचरण , समिति पञ्च       प्रकार ।
प्रबल पञ्च इन्द्रिय विजय , धार निर्जरा सार ।।१०।।
चौदह राजू उतंग नभ ,  लोक   पुरुष   संठान ।
तामे जीव अनादिते , भरमत हैं बिन ज्ञान  ।।११।।
धन कन कंचन राज सुख , सबहि सुलभ कर जान ।
दुर्लभ   है संसार    में , एक    जथारथ ज्ञान ।।१२।।
जाचे सुर तरु देय सुख , चिन्तत चिन्ता रैन ।
बिन जाचेँ बिन चिंतये ,  धर्म सकल सुख दैन ।।१३।।

                        प्रस्तुति :-सागर कुमार 'सागर'

1 comment: