Saturday, 21 September 2013

।। दर्शन स्तुति ( प्रभु पतित पावन ) ।।

प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरण आयो शरण जी ।
यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरण जी ।।१।।
तुम ना पिछान्या आन मान्या, देव विविध प्रकार जी ।
या बुद्धि सेती निज न जाण्यो,भ्रम गिण्यो हितकार जी ।।२।।
भव विकट वन में करम वैर्री, ज्ञानधन मेरो हरयो ।
सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय,अनिष्ट गति धरतो फिरयो ।।३।।
धन घडी यो धन दिवस यो ही,धन जनम मेरो भयो ।
अब भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लख लयो।।४।।
छवि  वीतरागी  नगन  मुद्रा,   द्रष्टि  नासा   पै    धरें ।
वसु प्रातिहार्य अनन्त गुण जुत, कोटि रवि छवि को हरे ।।५।।
मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो,उदय रवि आतम भयो ।
मो उर हर्ष ऐसों भयो, मनु रंक चिंतामणी लयो ।।६।।
मैं हाथ जोड़ नवाऊ मस्तक , वीनउ तुम चरण जी ।
सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन,सुनहु तारण तरन जी ।।७।।
जाँचू नहीं सुरवास पुनि,नर-राज परिजन साथ जी ।
"बुध" जाचहूं तुम भक्ति भव भव दीजिये शिवनाथ जी ।।८।।

                         प्रस्तुति :-सागर कुमार 'सागर'

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