:दोहा:
वीतराग वंदो सदा , भाव सहित सिरनाय ।
कहूँ काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाय ।।
:चौपाई:
अष्टापद आदीश्वर स्वामी,वासुपूज्य चम्पापुरी स्वामी ।
नेमिनाथ स्वामी गिरनार ,वंदो भाव भगति उर धार ।।
चरम तीर्थंकर चरम शरीर,पावापुरी स्वामी महावीर ।
शिखरसम्मेद जिनेसुर बीस,भावसहित वंदो निश दिस।
वरदत्तराय रु इंद्र मुनिन्द्र, सायरदत्त आदि गुणवृन्द ।
नगर तारवर मुनि उठकोड़ी, वंदो भाव सहित कर जोडि ।।
श्री गिरनार शिखर विख्यात,कोडी बहत्तर अरु सौ सात ।
संबु प्रद्युम्न कुमर द्वे भाय, अनिरुद्ध आदि नमूं तसु पाय ।।
रामचन्द्र के सुत द्वे वीर,लाड नरिंद आदि गुणधीर ।
पाँच कोडी मुनि मुक्ति मंझार,पावागिरी वन्दौं निरधार ।।
पाण्डव तीन द्रविड़ राजान,आठ कोडी मुनि मुक्ति पयान ।
श्री शत्रुंजय गिरी के शीश,भावसहित वन्दौ निश दिस ।।
जे बलभद्र मुक्ति में गये , आठ कोडी मुनि औरहु भये ।
श्रीगजपन्थ शिखर सु विशाल,तिनके चरण नमूं तिहूँ काल ।।
राम हनू सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील महानील ।
कोडी निन्यानवे मुक्ति पयान,तुंगीगिरी वन्दौ धरि ध्यान ।।
नंग अनंग कुमार सुजान, पाँच कोडी अरु अर्ध प्रमान ।
मुक्ति गये सोनागिरी शीश , ते वन्दौं त्रिभुवनपति ईस ।।
रावण के सुत आदिकुमार , मुक्ति गए रेवातट सार ।
कोटि पञ्च अरु लाख पचास , ते वन्दौं धरी परम हुलास ।।
रेवानदी सिद्धवर कूट , पश्चिम दिशा देह जहं छूट ।
द्वे चक्री दश कामकुमार, उठ्कोड़ी वन्दौं भव् पार ।।
बडवानी बडनयर सुचंग , दक्षिण दिशि गिरी चूल उतंग ।
इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण , ते वन्दौं भव सायर तर्ण ।।
सुवरण भद्र आदि मुनि चार , पावागिरी वर शिखर मंझार ।
चेलना नदी तीर के पास , मुक्ति गए वन्दौं नित तास ।।
फलहोड़ी बडगाम अनूप , पच्छिम दिशा द्रोणगिरी रूप ।
गुरुदत्तादि मुनिसुर जहाँ , मुक्ति गये वन्दौं नित तहां ।।
बाल महाबाल मुनि दोय , नागकुमार मिले त्रय होय ।
श्री अष्टापद मुक्ति मंझार , ते वन्दौं नित सुरत संभार ।।
अचलापुर की दिश ईसान , जहाँ मेंढगिरी नाम प्रधान ।
साढ़े तीन कोड़ी मुनिराय , तिनके चरण नमूं चित लाय ।।
वंसस्थल वनके ढिग होय , पच्छिम दिशा कुन्थुगिरि सोय ।
कुलभूषण देशभूषण नाम , तिनके चरणनि करूँ प्रणाम ।।
जसरथ राजा के सुत कहे ,देश कलिंग पाँचसौ लहे ।
कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान ,वंदन करूँ जोड़ जुग पान ।।
समवशरण श्री पार्श्व जिनंद , रेसिंदीगिरी नयनानंद ।
वरदत्तादी पंच ऋषिराज , ते वन्दौं नित धरम जिहाज ।।
तीन लोक के तीरथ जहाँ , नित प्रति वंदन कीजै तहां ।
मन वच काय सहित सिरनाय , वंदन करहिं भविक गुणगाय ।।
संवत सतरहसौ इकताल , आश्विन सुदी दशमी सुविशाल ।
'भैया' वन्दन करहिं त्रिकाल , जय निर्वाण काण्ड गुणमाल ।।
प्रस्तुति : सागर कुमार 'सागर'